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☸ *संघ में नेतृत्व परिवर्तन*☸
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*सन 2000 की बात है. कई वैश्विक संस्थाए आरएसएस को दुनिया का सबसे बड़ा स्वंयसेवी संगठन स्वीकार कर चुकी थीं. केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली NDA की सरकार थी जिसके बारे में कहा जाता था कि- वह आरएसएस के निर्देश पर काम करती है.*
*उस समय विश्व के, उस सबसे बड़े संगठन (आरएसएस) के सर संघ चाल्रक थे प्रो. राजेन्द्र सिंह उर्फ़ रज्जू भैया, उन दिनों रज्जू भैया कुछ अस्वस्थ चल रहे थे और रज्जू भैया ने दायित्वमुक्त होने के संकेत दिए. वैश्विक मीडिया की निगाह भी उन पर लग गई.*
*मीडिया को जिज्ञासा थी कि - संघ में क्या होगा ? कौन नया सर संघ चालक कौन बनेगा और यह अब कैसे बनेगा ? लेकिन कहीं से भी कोई ऐसी खबर नहीं मिल पा रही थी कि- संघ में नए प्रमुख (सर संघचालक) बनने को लेकर क्या चल रहा है.*
*10 मार्च 2000 से नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनधि सभा का कार्यक्रम प्रारम्भ होना था. मीडिया भी वहां कोई मसालेदार खबर की तलाश में पहुँच गया था. मीडिया को लग रहा था कि- हर छोटे बड़े संगठन की तरह यहाँ भी पद के लिए कुछ हंगामा तो जरुर होगा.*
*कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया बौद्धिक दे रहे थे और स्वयंसेवक खामोशी से सुन रहे थे. बौद्धिक के अंत में उन्होंने कहा कि- मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और मैं अपने दायित्वों को निभा पाने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ.*
*मुझे लगता है कि - के. एस. सुदर्शन जी इस कार्य को ज्यादा अच्छी तरह से कर सकते हैं. उनकी इस बात पर मीडिया की नजरे सामने बैठे स्वयंसेवको पर चली गई. वे उनकी कोई ऐसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे जिसको ब्रेकिंग न्यूज बनाया जा सके.*
*लेकिन वहां न तो इस बात पर ताली बजीं और न ही किसी ने अस्वीकृति जताई. सुदर्शन जी अपने स्थान पर खड़े हुए. उनके खड़े होते ही एक जय घोष लगा "भारत माता की जय". उसके बाद रज्जू भैया ने हाथ पकड़कर सुदर्शन जी को अपनी कुर्सी पर बिठाया.*
*सुदर्शन जी के कुर्सी पर बैठते ही रज्जू भैया, मंच के सामने स्वंयसेवकों के साथ दरी पर बैठ गए. यह देखकर सारा विश्व मीडिया आश्चर्यचकित रह गया. इतना बड़ा संगठन और इतनी सहजता से नेतृत्व परिवर्तन ? उनको तो विशवास ही नहीं हो पा रहां था.*
*आज जब एक बहुत पुरानी पार्टी में नेत्रत्व परिवर्तन के नाम पर होने वाली नौटंकी को देखते हैं तो संघ और उसके अन्य अनुशान्गिक संगठनो में समय समय पर होने वाले दायित्व परिवर्तन और नेतृत्व परिवर्तन की सहजता को याद करके गर्व महसूस होता है.*